www.hindisahityadarpan.in
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अपनी रचनाओं के प्रकाशन के लिए
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आज की बिटिया
कल की नारी है।
वही इंदिरा,
दुर्गा, लक्ष्मी, किरन,
अन्नपूर्णा
और जग कल्याणी है।
इनकी
अपनी अलग कहानी है,
बिटिया
के जन्म का उत्सव मनाओ।
पढ़ा-लिखाकर
उसे काबिल बनाओ॥
बेटा-बिटिया
में भेद-भाव करना सरासर अन्याय है,
इसी भेद-भाव
के कारण तो आज इनका घटता अनुपात है।
उनमें से
तो कुछ चढ़ा दी जाती है, दहेज की बलि,
कुछ
कुपोषण के कारण खिलने से पूर्व ही मुरझाती है कली,
कुछ होती
जा रही हैं दुराचार और शोषण की शिकार॥
यदि ऐसे
ही घटता रहा इनका अनुपात,
तो
घर-परिवार और देश को चलाएगा कौन?
सोचो
ज़रा सब तरफ बढ़ेगा अत्याचार और बलात्कार।
जैसे एक
पहिए से गाड़ी नहीं चल पाएगी,
वैसे ही
नारी के बिना क्या यह दुनिया चल पाएगी?
जैसे नल
होगा बिना पानी के ,
वैसे ही
नर रहेगा बिना नारी के।
नारी ही
तो है जन-जन की जननी,
वही रखती
ख्याल सबका दिन-रात॥
नारी ही
तो चलाती है,
घर, समाज,
देश और संसार।
नारी से
बढ़कर कोई नहीं,
इनकी
महिमा अपरंपार॥
जहाँ
इनको मिलता है सम्मान,
वहीं
रमते हैं श्री भगवान।
हर जन,
समाज, और सरकार से
है विनती
हमारी।
लड़कियों
को सबल बनाएँ,
और दें
इन्हें सुविधाएँ सारी॥
पढ़ी-लिखी
बालिका पर ही टिकी हैं,
परिवार, समाज
और देश की उम्मीदें सारी।
घर-घर
में होता है दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का अवतार,
यह कथा
नहीं सच्चाई है, इसे स्वीकारने से मत करें इनकार॥
इस धरती
को स्वर्ग बनाओ,
बिटिया
को सँवारो, पढ़ाओ और सबल बनाओ।
बिटिया
के जन्म का उत्सव मनाओ,
पढ़ा-लिखाकर
उसे काबिल बनाओ॥
-
राम प्यारे सिंह
M.A. (Hindi-Sanskrit), B.Ed.
PGD.RD. (Rural Development),
C.I.G. (Guidance), CTET.(CBSE)
TGT. Sanskrit (APS. Golconda,
Hyd.31)
Hindi Articles :
सफलता का रहस्य
यदि हमारे अन्दर कुछ करने की बनने की इच्छा या
महत्वाकांक्षा है तो जीवन में सफलता पाने के लिए हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश करते
रहना चाहिए।
हमारे अन्दर दृढ़ संकल्प होना
चाहिए। इस बीच अंधकार भले ही हो या
कठिनाइयाँ आए, हमें उसकी चिंता किए बिना विश्वास के साथ उसका सामना कर्तव्य निष्ठा
से करना चाहिए। निरंतर अभ्यास से ही लक्ष्य की प्राप्ति होगी।
जीवन की सफ़र में हम,
रूक-रूक कर नहीं चलते।
पथरीली राहों पर भी ,
आसानी से हैं बढ़ते।
काँटों की नहीं परवाह,
फोलों में नहीं पलते।
हर काम हो जाए आसां,
निश्चय अगर हम करते॥
-
साजदा बेगम
टी०जी०टी० (हिन्दी)
माँ की ममता
माँ की ममता सबसे
प्यारी
सारे जग में सबसे
न्यारी ।
सबके दिल को भाने
वाली
प्यार का मोल सिखाने
वाली।।
पिता का प्यार भी है
अनोखा
सारे जीवन को उमंगों
से है भरता।
हाथ पकड़ कर चलना
सिखाए
जीवन की नई राह
दिखाए॥
माता-पिता की सेवा
करना
प्यार नम्रता में ही
चलना।
सदाचार अपनाते रहना
जीवन खुशियों से तुम
भरना॥
माता-पिता बच्चों का
हाथ पकड़ कर उसे चलना सिखाते हैं, अगर बड़े होकर वे ही बच्चे अपने माता-पिता का
सहारा न बने तो उन बच्चों के लिए शर्म की बात है।
-
वैष्णव कक्षा – 7 अ
चुटकुले
तोतली और भिखारी
भिखारी- कुछ खाने को
दे दो।
लड़की- टमाटर खाओ ।
भिखारी- रोटी दे दो ।
लड़की- टमाटर खाओ ।
भिखारी- टमाटर ही दे दो।
लड़की की माँ- अरे तुम जाओ बाबा ,
यह तोतली है । यह कह रही है- कमाकर खाओ।
n
कार्तिक एन०
कक्षा -7 अ
राजा
अपना है बीमार-
सुनो,
सुनो सब लोग सुनो
राजा
अपना है बीमार!
सही दवा
का है इन्तज़ार|
जो राजा
को ठीक करेगा
सोना-चाँदी
जीत सकेगा॥
जम कर
होगी वाह–वाही
राजकुमारी
से होगी शादी!
सुनो-सुनो
सब लोग सुनो
राजा
अपना है बीमार॥
-विशाल कक्षा-
6 अ
व्यक्ति और नैतिक
मूल्य
मानव तू संसृति का
पोषक है,
तेरी सत्ता महान है|
तू रचेगा नया
विश्व,
तू धरती पर वरदान
है|
शेक्सपीयर
ने मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा है| मनुष्य सृष्टि का एकमात्र ऐसा
प्राणी है जो अपने बुद्धि-विवेक तथा भाषा-कौशल से संसार को एक नवीन दिशा, एक नया
प्रारूप प्रदान कर सकता है| आधुनिक मानव ने विज्ञान, तकनीक तथा प्रौद्योगिकी को
इतना विकसित किया कि उस विकास की चकाचौंध में मानवीय मूल्य धुंधले हो गए | बदलते
समय के चक्र में समस्त नैतिक मूल्य कहीं पिसकर रह गए |
धनार्जन
करना ही आज के मानव का ध्येय बनकर रह गया है | वह यह भूल गया है कि उसके अस्तित्व
व उसकी अस्मिता की पहचान धन-धान्य से न होकर, उसके गुणों से है | श्रेष्ठ बनने की
इच्छा में वह निम्न से निम्नतर होता जा रहा है | आज आवश्यकता है, प्रत्येक मनुष्य
के ह्रदय में मानवीय मूल्यों की स्रोतस्विनी बहाने की, मानव को उसके वास्तविक
कर्तव्यों से परिचित कराने की, ताकि पुनः एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जहाँ
प्रेम, परोपकार, भ्रातृत्व, अपनत्व और सहानुभूति के पुष्प अपने समस्त रंगों के साथ
महकें |
डॉ. रक्षा मेहता
टी.जी.टी (हिन्दी)
जिन्दगी में कुछ बनना चाहो
जिन्दगी में कुछ बनना चाहो,
उससे पहले अच्छा इंसान बनो।
फैसला लेने से पहले तुम,
अपने मन की बात सुनो।।
गुरु है भगवान समान ,
कभी न करो इनका अपमान।
उनके बताए रास्ते पर चलने से,
नैया तुम्हारी पार लगेगी।
अच्छी बात तुम्हें बताएँगे,
अच्छी सीख तुम्हें सिखाएंगे।|
भगवान तुम्हें मन्दिर में न मिलेंगे,
वे तो तुम्हें गुरु-चरणों में मिलेंगे।
बिगड़ी बात वहीं बनाएँगे,
आगे की राह दिखाएँगे।
ज्ञान का दीप जलाकर,
तुम्हें अच्छा इन्सान बनाएँगे॥
ॠतिक यादव
कक्षा सातवीं -स
पर्यावरण:-
पेड़-पौधे, पहाड़, नदियाँ,
हैं कुछ अनमोल रत्न धरती के।
रखो बचाकर तुम इन्हें,
देंगे तुम्हें नई जिन्दगियाँ।।
पेड़-पौधे देते हैं हमें लकड़ियाँ,
तथा खाने की सामग्रियाँ।
पहाड़ देते हमको पानी,
कहा करती थी मुझसे ये नानी।।
पेड़-पहाड़, हवा और जंगल,
करते हैं धरती पर मंगल।
पेड़ देते ऑक्सीज़न हमको,
मत काटो अंधाधुंध इनको॥
रेनू कुमारी ……
छठी- स
प्रकृति-
प्रकृति है अनमोल खज़ाना,
यह तो होगा हम सबको मानना।
खुश रखना इसको सब,
दुःख मत देना इसको अब।
प्रकृति देती है इतना कुछ,
प्रयास करो इसे रखने के लिए स्वच्छ॥
अंतरा ठाकुर
छठी- ब
पढ़ाई, पढ़ाई, पढ़ाई-
पढ़ाई, पढ़ाई, पढ़ाई,
न जाने यह मुसीबत कहाँ से आई।
न जाने इसे किसने बनाई,
मम्मी कहती करो पढ़ाई,
वरना करूँगी पिटाई।
पापा कहते करो पढ़ाई,
वरना बरबाद हो जाएगी मेरी कमाई।।
दादी कहती करो पढ़ाई,
तो दूँगी मैं तुम्हें मिठाई।
पढ़ाई, पढ़ाई, पढ़ाई,
न जाने यह मुसीबत कहाँ से आई।
न जाने इसे किसने बनाई।।
पंकज राय
छठी- अ
कामयाबी-
मेरा देश-
गुरुकुल को स्कूल खा गया,
from FB
कामयाबी-
रोने से तकदीर नहीं बनती,
वक्त से पहले शाम नहीं ढ़लती।
दूसरों की कामयाबी लगती है इतनी आसान,
मगर कामयाबी रास्ते में पड़ी नहीं
मिलती॥
मिल भी जाए अगर कामयाबी रास्ते में
पड़ी,
यह भी सच है कि वह पचती नहीं।
कामयाबी पाना है पानी में आग लगाने
जैसा,
पानी में आग आसानी से लगती नहीं।|
ऐसा भी लगता
है जिन्दगी में कभी-कभी,
दुनिया जज़बात समझती नहीं।
हाथ बाँधकर बैठे रहने से पहले सोच ए-इंसान,
अपने आप कोई जिन्दगी सँवरती नहीं॥
अमन गुप्ता
कक्षा सातवीं- स
मेरा देश-
भारत है मेरा देश,
सबके अलग है वेश।
इस देश के पास है वीरों की भरमार,
यहाँ बातों से
बात चले तीरों से तलवार।
यह देश है
महान,
इससे टकराना
नहीं है आसान।
दूर-दूर तकहै
इसके नाम का शोर,
मेरे देश के
चरचे हैं चारो ओर।|
यहाँ रहते हैं
हिन्दू, मुस्लिम,सिक्ख और ईसाई,
पर हम सब
मिलकर रहते हैं भाई।
सबके अलग है
वेश,
भारत है मेरा देश॥
सृष्टि निखाद
कक्षा छठी- स
हमारी आधुनिकता
नमस्कार को टाटा खाया,
नूडल को आंटा !!
अंग्रेजी के चक्कर में
हुआ बडा ही घाटा !!
माताजी को मम्मी खा गयी,
पिता को खाया डैड !!
और दादाजी को ग्रैंडपा खा गये,
सोचो कितना बैड !!
गुरुकुल को स्कूल खा गया,
गुरु को खाया चेला !!
और सरस्वती की प्रतिमा पर
देखो उल्लू मारे ढेला !!
चौपालों को बियर बार खा गया,
रिश्तों को खायी टी.वी. !!
और देख सीरियल लगा लिपिस्टिक
बक-बक करती बीबी !!
रसगुल्ले को केक खा गया
और दूध पी गया अंडा !!
और दातून को टूथपेस्ट खा गया,
छाछ पी गया ठंडा !!
परंपरा को कल्चर खा गया,
हिंदी को अंग्रेजी !!
और दूध-दही के बदले चाय
पी कर आज बने हम लेजी !!
Army
Public School Golconda, Hyderabad-31
आर्मी पब्लिक स्कूल गोलकोंडा,
हैदराबाद में के०मा०शि०प० नई दिल्ली के
निर्देशानुसार संस्कृत सप्ताह मनाया गया जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्यक्रमों का
आयोजन किया गया:—
1- दिनांक 07-07-2014 को ‘सत्संगति का प्रभाव’ विषय पर महर्षि वाल्मीकि के प्रारंभिक जीवन पर
आधारित एक लघु नाटक विद्यालय के संस्कृत अध्यापक श्री राम प्यारे सिंह के
मार्गदर्शन में कक्षा 8वीं ‘अ’ के विद्यार्थियों द्वारा प्रार्थना सभा में
प्रस्तुत किया गया।
2- दिनांक 12-07-2014 को ‘अभ्यास
का महत्त्व’ विषय पर
आचार्य वरदराज के प्रारंभिक जीवन पर आधारित एक लघु नाटक विद्यालय के
संस्कृत अध्यापक श्री राम प्यारे सिंह के मार्गदर्शन में कक्षा 8वीं ‘ब’ के
विद्यार्थियों द्वारा प्रार्थना सभा में प्रस्तुत किया गया।
3- दिनांक
13-07-2014 को विद्यालय के संस्कृत अध्यापक श्री राम प्यारे सिंह के मार्गदर्शन
में महर्षि विद्या मंदिर कोंडापुर, हैदराबाद द्वारा आयोजित श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक
वाचन स्पर्धा में कक्षा 8वीं ‘स’ के छात्र प्रणव खाँ ने, सुभाषित श्लोक वाचन
स्पर्धा में कक्षा 8वीं ‘ब’ के छात्र रितिन बाबू ने तथा संस्कृतविषयक
अभिभाषण स्पर्धा में कक्षा 8वीं ‘स’ की छात्रा अथिरा मनोहर ने भाग लिया।
4- दिनांक
14-07-2014 को कक्षा 8वीं ‘स’ की छात्रा ओझेश्वरी ने ‘संस्कृत भाषा के अध्ययन की आवश्यकता’ विषय पर प्रार्थना सभा में एक व्याख्यान दिया।
5- दिनांक
21-07-2014 भारतीय विद्या भवन- विद्याश्रम जुबली हिल्स, हैदराबाद द्वारा संस्कृत
अध्यापकों हेतु आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी में विद्यालय के संस्कृत अध्यापक श्री
राम प्यारे सिंह ने भाग लिया और अपना प्रजेंटेशन प्रस्तुत किया।
ह० संस्कृत अध्यापकः प्रधानाचार्या
‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ में 'अधिनायक' कौन है ?
‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ में 'अधिनायक' कौन है ?
‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान है, जो मूलतः बांग्ला-भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1861-1941) द्वारा 1911 में लिखा गया था।
सन 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी। सन 1905 में जब बंगाल-विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजों ने अपने को बचाने के लिए भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले गए और 1912 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। इस समय जब पूरे भारत में लोग विद्रोह से भरे हुए थे, अंग्रेजों ने इंग्लैंड के राजा किंग जार्ज V (1910-1936) को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाएं.
किंग जार्ज V 12 दिसंबर, 1911 में भारत में आया तो अंग्रेजों ने रवींद्रनाथ ठाकुर पर दबाव बनाया कि तुम्हें एक गीत राजा के स्वागत में लिखना होगा. उस समय रवींद्रनाथ का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे. रवींद्रनाथ के दादा द्वारकानाथ ठाकुर (1794-1846) ने बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी की. जब किंग जार्ज V भारत आए थे, तब रवींद्रनाथ के परिवार के एक सदस्य को उनके सिर पर छतरी तानने का जिम्मा दिया गया था।
किंग जार्ज V की स्तुति में रवींद्रनाथ ठाकुर ने जो गीत लिखा, उसके बोल हैं : "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता". इस गीत के सारे-के-सारे शब्दों में जार्ज V का गुणगान है, जिसका अर्थ "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है हे अधिनायक (सुपर हीरो), तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो, तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महाराष्ट्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदियां, जैसे— यमुना और गंगा— ये सभी हर्षित हैं खुश हैं प्रसन्न हैं तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते हैं और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते तुम्हारी ही हम गाथा गाते हैं. हे भारत के भाग्यविधाता (सुपर हीरो) तुम्हारी जय हो"
परन्तु यह गीत जार्ज V के स्वागत में 12 दिसंबर, 1911 को दिल्ली-दरबार में नहीं गाया गया। जार्ज जब इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जार्ज ने जब इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। खुश होकर उसने आदेश दिया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इंग्लैंड बुलाया जाये। रवीन्द्रनाथ ठाकुर इंग्लैंड गए। जार्ज V उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रवीन्द्रनाथ ने नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया, क्योंकि गाँधीजी ने रवीन्द्रनाथ को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। रवीन्द्रनाथ ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक ‘गीतांजलि’ नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो ‘गीतांजलि’ नामक रचना पर दिया गया है। जार्ज V मान गया और रवीन्द्रनाथ को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना पर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रवींद्रनाथ ठाकुर के बहनोई, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और IPS ऑफिसर थे. रवींद्रनाथ ने अपने बहनोई को एक पत्र लिखा | इसमें उन्होंने लिखा कि ये गीत “जन गण मन अंग्रेजों द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है. इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है. इसको न गाया जाये तो अच्छा है.” लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं बताया जाये. लेकिन कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |
दिल्ली-दरबार के बाद हुए कांग्रेस के कलकत्ता-अधिवेशन (27 दिसम्बर, 1911) में ‘जन गण मन’ गीत को दोनों भाषाओं में (बांग्ला और हिन्दी) गाया गया। अगले दिन अख़बारों में प्रकाशित हुआ :
* अधिवेशन की कार्रवाई रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुई। ठाकुर का यह गीत राजा पंचम जॉर्ज के स्वागत के लिए खास तौर से लिखा गया था। (द इंग्लिश मैन, कलकत्ता)
* कांग्रेस का अधिवेशन रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुआ। जॉर्ज पंचम के लिए लिखा यह गीत अंग्रेज प्रशासन ने बेहद पसंद किया है। (अमृत बाजार पत्रिका, कलकत्ता)
कांग्रेस तब अंग्रेज वफादारों का संगठन था। 1947 में भारत के स्वाधीन होने के बाद संविधान सभा में इस बात पर लंबी बहस चली कि राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम’ हो या ‘जन-गण-मन’। अंत में ज्यादा वोट ‘वंदे मातरम’ के पक्ष में पड़े, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ‘जन गण मन’ को ही राष्ट्रगान बनाना चाहते थे। अंततोगत्वा संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 को जन-गण-मन को ‘भारत के राष्ट्रगान’ के रुप में स्वीकार कर लिया. स्वाधीनता-आंदोलन के समय से ही ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय गीत की हैसियत मिली हुई थी, लेकिन उसे मुसलमान मानने को तैयार नहीं थे। सो, 'जन−गण−मन' अपना राष्ट्रगान हो गया|
मणि मित्तल- सुप्रीम कोर्ट / facebook.com
Hindi article APSG Magazine 2013
‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान है, जो मूलतः बांग्ला-भाषा में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर (1861-1941) द्वारा 1911 में लिखा गया था।
सन 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता हुआ करती थी। सन 1905 में जब बंगाल-विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजों ने अपने को बचाने के लिए भारत की राजधानी कलकत्ता से हटाकर दिल्ली ले गए और 1912 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। इस समय जब पूरे भारत में लोग विद्रोह से भरे हुए थे, अंग्रेजों ने इंग्लैंड के राजा किंग जार्ज V (1910-1936) को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाएं.
किंग जार्ज V 12 दिसंबर, 1911 में भारत में आया तो अंग्रेजों ने रवींद्रनाथ ठाकुर पर दबाव बनाया कि तुम्हें एक गीत राजा के स्वागत में लिखना होगा. उस समय रवींद्रनाथ का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे. रवींद्रनाथ के दादा द्वारकानाथ ठाकुर (1794-1846) ने बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी की. जब किंग जार्ज V भारत आए थे, तब रवींद्रनाथ के परिवार के एक सदस्य को उनके सिर पर छतरी तानने का जिम्मा दिया गया था।
किंग जार्ज V की स्तुति में रवींद्रनाथ ठाकुर ने जो गीत लिखा, उसके बोल हैं : "जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता". इस गीत के सारे-के-सारे शब्दों में जार्ज V का गुणगान है, जिसका अर्थ "भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है हे अधिनायक (सुपर हीरो), तुम्हीं भारत के भाग्य विधाता हो, तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महाराष्ट्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदियां, जैसे— यमुना और गंगा— ये सभी हर्षित हैं खुश हैं प्रसन्न हैं तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते हैं और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते तुम्हारी ही हम गाथा गाते हैं. हे भारत के भाग्यविधाता (सुपर हीरो) तुम्हारी जय हो"
परन्तु यह गीत जार्ज V के स्वागत में 12 दिसंबर, 1911 को दिल्ली-दरबार में नहीं गाया गया। जार्ज जब इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जार्ज ने जब इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। खुश होकर उसने आदेश दिया कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को इंग्लैंड बुलाया जाये। रवीन्द्रनाथ ठाकुर इंग्लैंड गए। जार्ज V उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रवीन्द्रनाथ ने नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया, क्योंकि गाँधीजी ने रवीन्द्रनाथ को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। रवीन्द्रनाथ ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक ‘गीतांजलि’ नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो ‘गीतांजलि’ नामक रचना पर दिया गया है। जार्ज V मान गया और रवीन्द्रनाथ को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना पर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रवींद्रनाथ ठाकुर के बहनोई, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और IPS ऑफिसर थे. रवींद्रनाथ ने अपने बहनोई को एक पत्र लिखा | इसमें उन्होंने लिखा कि ये गीत “जन गण मन अंग्रेजों द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है. इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है. इसको न गाया जाये तो अच्छा है.” लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं बताया जाये. लेकिन कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |
दिल्ली-दरबार के बाद हुए कांग्रेस के कलकत्ता-अधिवेशन (27 दिसम्बर, 1911) में ‘जन गण मन’ गीत को दोनों भाषाओं में (बांग्ला और हिन्दी) गाया गया। अगले दिन अख़बारों में प्रकाशित हुआ :
* अधिवेशन की कार्रवाई रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुई। ठाकुर का यह गीत राजा पंचम जॉर्ज के स्वागत के लिए खास तौर से लिखा गया था। (द इंग्लिश मैन, कलकत्ता)
* कांग्रेस का अधिवेशन रवींद्रनाथ ठाकुर के लिखे एक गीत से शुरू हुआ। जॉर्ज पंचम के लिए लिखा यह गीत अंग्रेज प्रशासन ने बेहद पसंद किया है। (अमृत बाजार पत्रिका, कलकत्ता)
कांग्रेस तब अंग्रेज वफादारों का संगठन था। 1947 में भारत के स्वाधीन होने के बाद संविधान सभा में इस बात पर लंबी बहस चली कि राष्ट्रगान ‘वंदे मातरम’ हो या ‘जन-गण-मन’। अंत में ज्यादा वोट ‘वंदे मातरम’ के पक्ष में पड़े, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ‘जन गण मन’ को ही राष्ट्रगान बनाना चाहते थे। अंततोगत्वा संविधान सभा ने 24 जनवरी, 1950 को जन-गण-मन को ‘भारत के राष्ट्रगान’ के रुप में स्वीकार कर लिया. स्वाधीनता-आंदोलन के समय से ही ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रीय गीत की हैसियत मिली हुई थी, लेकिन उसे मुसलमान मानने को तैयार नहीं थे। सो, 'जन−गण−मन' अपना राष्ट्रगान हो गया|
मणि मित्तल- सुप्रीम कोर्ट / facebook.com
Hindi article APSG Magazine 2013