Tuesday, September 9, 2014

सुन्दर वचन-






प्रबन्धन एवं योग्यता

अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं 
अयोग्यः पुरुषः नास्तियोजकः तत्र दुर्लभ
— 
शुक्राचार्य
कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोईमन्त्र  शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़नही है , जिससे कोई औषधि  बनती हो और कोई भी आदमीअयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजरही दुर्लभ हैं 



कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥
 पंचतंत्र
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है?
विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?

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